काल सर्प दोष क्या है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति की कुंडली मे कालसर्प दोष का बनना राहू एवं केतू की स्थिति पर निर्भर करता है। काल सर्प दोष योग तब बनता है, जब सभी 7 ग्रह राहू और केतू की तरफ हो जाए और दूसरी तरफ कोई ग्रह रहे। व्यक्ति के पूर्व जन्म के किसी अपराध के दंडस्वरूप भी यह दोष बनता है। कालसर्प दोष का निर्धारण करते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए। जिस व्यक्ति की कुंडली मे यह दोष होता है, उसे बहुत समस्याओ और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
कालसर्प दोष के लक्षण क्या है?
कालसर्प दोष के निम्नलिखित लक्षण है-
- परिश्रम करने के पश्चात भी बार बार असफलता प्राप्त होना।
- परिवार मे कलह और झगड़े का माहौल बने रहना।
- व्यापार मे सदैव हानि होना।
- रिश्तेदारों से मधुर संबंध न रहना।
- संतान नही होती है, अगर होती भी है तो वह सदैव बीमार रहती है।
- घर मे मांगलिक और शुभ कार्य का न हो पाना।
- अपने किसी मृत परिजन को स्वप्न मे देखना।
- संपत्ति और धन की हानि लगातार होते रहना।
- कम आत्मविश्वास।
- साँप का या साँप द्वारा काटे जाने का भय सदैव बने रहना।
- अकेलेपन की भावना का बड़ना।
- मानसिक शांति न होना।
- महत्वपूर्ण कार्यो का न हो पाना।
कुंडली मे काल सर्प दोष योग कैसे बनता है?
जब सूर्यमंडल के सातो गृह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति तथा शनि राहू एवं केतू के बीच मे आ जाते है। ऐसा लगता है, जैसे राहू और केतू ने सभी ग्रहो को अपने बीच मे समाहित कर लिया हो।
ज्योतिष शास्त्रो के अनुसार राहू एवं केतू को सर्प माना गया है। जिसमे राहू को सर्प का मुख वाला भाग तथा केतू को पूछ वाला भाग माना जाता है। जब सभी ग्रह इन दोनों बिन्दुओ के बीच मे आ जाते है, ऐसी दशा को ही काल सर्प दोष योग कहा जाता है।
राहू और केतू अलग अलग घर या भाव मे स्थित हो सकते है। इस प्रकार राहू और केतू के अलग घर या भाव मे स्थित होने पर काल सर्प दोष का प्रभाव बदल जाता है, और काल सर्प दोष से पड़ने वाला प्रभाव भी बदल जाता है।
ग्रहो की स्थिति के अनुसार काल सर्प दोष के 12 प्रकार के होते है।
कालसर्प दोष के उपाय
कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए आप निम्नलिखित उपायो को अपना सकते है-
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- महामृत्युंजय मंत्र का जाप दिन में दो बार 11 बार करें।
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- ‘ॐ नागकुलाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात‘ का जाप करें।
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- ज्योतिषी के परामर्श से राहु और केतु की पूजा करें।
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- सर्प मंत्र और सर्प गायत्री मंत्र का जाप करें।
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- प्रत्येक श्रावण मास में शिवलिंग का जलाभिषेक करें।
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- 11 सोमवार का व्रत रखें।
काल सर्प दोष के प्रकार
अनंत कालसर्प दोष– जब राहू लग्न मे तथा केतू सप्तम भाव मे स्थित हो, और बाकी के ग्रह सप्तम, अष्टम, नवम, दशम, एकादश तथा द्वादश भाव मे स्थित हो तो अनंत काल सर्प दोष व्यक्ति की जन्मकुंडली मे होता है। जब ग्रहो की ऐसी स्थिति बनती तो व्यक्ति को अपमान, चिंता और पानी का भय बना रहता है।
कुलीक कालसर्प दोष – जब व्यक्ति की जन्मकुंडली मे राहू द्वितीय तथा केतू अष्टम भाव मे स्थित हो, तो और अन्य सभी ग्रह इन दोनों राहू एवं केतू के बीच मे आ जाते है तब व्यक्ति कुलीक काल सर्प दोष से पीड़ित माना जाता है। ग्रहो के ऐसे योग के कारण धन संबंधी हानि, दुर्घटना एवं परिवार मे लड़ाई का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है।
वासुकि कालसर्प दोष– राहू तृतीय भाव मे स्थित हो तथा केतू नवम भाव मे स्थित हो, तो जो योग बनता है उसे वासुकि काल सर्प दोष कहा जाता है। ग्रहो के प्रभाव के कारण व्यक्ति सदैव किसी बीमारी से पीड़ित या अपने ही किसी रिश्तेदार के कारण हानि का सामना करता है।
शंखपाल कालसर्प दोष– जब राहू चतुर्थ भाव मे तथा केतू दशम भाव मे स्थित हो, तो जातक की जन्मकुंडली मे शंखपाल काल सर्प दोष परिलक्षित होता है। इस दोष के करना जातक पिता के स्नेह और प्यार से वंचित रह जाता है। उसे नौकरी मे भी समस्या का सामना करना पड़ता है।
पद्म कालसर्प दोष– कुंडली मे पंचम भाव मे राहू तथा ग्यारहवे स्थान पर केतू हो, तो पद्म काल सर्प दोष योग बनता है। इस दोष से पीड़ित जातक उच्च शिक्षा, पत्नी की बीमारी और दोस्तो से होने वाली हानि का सामना करता है।
महापद्म कालसर्प दोष– कुंडली मे राहू छठे भाव मे तथा केतू बारहवे भाव मे स्थित हो, और अन्य सभी ग्रह राहू और केतू के बीच मे हो तब महापद्म काल सर्प दोष बनता है। इस दोष के कारण जातक को पीठ के निचले हिस्से मे दर्द, सरदर्द तथा त्वचा संबंधी बीमारिया होती है।
तक्षक कालसर्प दोष– जब जातक की कुंडली मे राहू सप्तम मे तथा केतू प्रथम भाव मे स्थित हो, तो ग्रहो के ऐसे संयोजन से बने योग को तक्षक काल सर्प दोष के नाम से जाना जाता है। तक्षक काल सर्प दोष से पीड़ित जातक को व्यवसाय संबंधी हानि, वैवाहिक जीवन मे कलह, दुर्घटना तथा चिंता और असंतोष का सामना करना पड़ता है।
कर्कोटक कालसर्प दोष– जब कुंडली मे राहू अष्टम स्थिति तथा केतू द्वितीय स्थिति मे हो, तो कर्कोटक काल सर्प दोष बनता है। इस दोष से पीड़ित जातक के पास धन सम्पत्ति को संभाल कर नहीं रख पाते, इन्हे जहरीले प्राणियों से नुकसान का खतरा बना रहता है।
शंखचूड़ काल सर्प दोष– जब व्यक्ति की जन्मकुंडली मे राहू नवम तथा केतू तृतीय भाव मे स्थित हो, और बाकी सभी ग्रह इन दोनों राहू और केतू के बीच मे हो तब शंखचूड़ कालसर्प दोष बनता है। इस दोष के कारण जातक धार्मिक विरोधी गतिविधियो, उच्च रक्तचाप तथा निरंतर चिंता का सामना करता है।
घातक कालसर्प दोष– जब राहू दशम घर मे तथा केतू चतुर्थ घर मे स्थित हो, तब कुंडली मे घातक कालसर्प दोष योग बनता है। इस दोष के प्रभाव के कारण जातक को कानूनी मुकदमे संबंधी समस्या और विवाद का सामना करना पड़ता है।
विषधर कालसर्प दोष– जब राहू ग्यारहवे भाव मे तथा केतू पंचम भाव मे स्थित हो, और शेष ग्रह इन दोनों के बीच ने समाहित हो, तो जातक विषधर कालसर्प दोष से पीड़ित माना जाता है। इस दोष के कारण व्यक्ति के जीवन मे अस्थिरता बनी रहती है।
शेषनाग कालसर्प दोष– जब जन्मकुंडली मे राहू द्वादश तथा केतू छठे भाव मे स्थित हो, तब व्यक्ति शेषनाग कालसर्प दोष से पीड़ित माना जाता है। इस दोष के पीड़ित जातक को अपने ही किसी खास दोस्त या रिश्तेदार से शत्रुता तथा संघर्ष का सामना करना पड़ता है।
महत्वपूर्ण सूचना
- काल सर्प दोष निवारण पूजा 3 घंटे मे सम्पूर्ण हो जाती है।
- पूजा करने वाले व्यक्ति को रामघाट मे स्नान करना होता है।
- काल सर्प दोष निवारण पूजा वाले दिन उपवास रखना चाहिए।
- पूजा के दिन काले एवं हरे रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
- पूजा के बाद कपड़े उज्जैन मे ही छोडने होते है।
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